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अम्बेडकर का चिंतन पूरे समाज को एक करने का रहा है : हनुमान सिंह

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जयपुर, 13 अप्रैल . प्रख्यात लेखक एवं चिंतक हनुमान सिंह ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर का चिंतन समाज को एक करने वाला रहा है. बाबासाहब के विचारों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत कर, उनके व्यक्तित्व को कमतर करने का प्रयास किया गया. वे शनिवार को

राजस्थान ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट फाउंडेशन (आरएचआरडी) द्वारा रविवार को आईजीपीआरएस सभागार में भारत रत्न डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर की 134वीं जयंती पर राष्ट्र ऋषि बाबासाहब भीमराव रामजी आम्बेडकर: बहु आयामी व्यक्तित्व विषय पर संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे. मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए

हनुमान सिंह ने स्पष्ट किया कि डॉ. आम्बेडकर हिंदू धर्म के विरोधी नहीं थे, बल्कि उसकी सामाजिक कुरीतियों के विरोधी थे. उन्होंने जाति प्रथा और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई, जो धर्मग्रंथों से नहीं, बल्कि सामाजिक ढांचे से उपजा था. उन्होंने कहा कि डॉ. आम्बेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाने से पहले करीब 21 वर्षों तक प्रतीक्षा की कि सनातनी हिंदू समाज में परिवर्तन हो, लेकिन जब अपेक्षित सुधार नहीं हुआ, तब उन्होंने बुद्ध का मार्ग चुना.

सिंह ने कहा कि यदि बाबासाहब ईसाई बनते, तो वे भारत से कभी जुड़े नहीं रह पाते, जबकि बौद्ध पंथ ने उन्हें भारतीयता से जोड़े रखा. वे न केवल संविधान निर्माता थे, बल्कि अपने समय के बड़े पत्रकार भी थे, जिन्होंने कई अखबार निकाले. उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता की बात की थी. उन्होंने कहा कि डॉ. आम्बेडकर व्यक्ति पूजा के विरोधी थे, इसलिए सिर्फ मूर्तियों से नहीं, बल्कि उनके विचारों को समझना और अपनाना जरूरी है. आज जय भीम देश में एक लोकप्रिय उद्बोधन बन चुका है, जो उनके सामाजिक प्रभाव को दर्शाता है. अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर के कुलाधिपति और आरएचआरडी संरक्षक कन्हैया लाल बेरवाल ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर को आजादी से पहले और बाद में योजनाबद्ध तरीके से अपमानित किया गया. उन्होंने बताया कि आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार ने उन्हें हराया, और 1954 के उपचुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा. बेरवाल ने कहा कि बाबासाहब ने हिंदू धर्म त्यागा नहीं, बल्कि बौद्ध पंथ को आत्मसात किया. उन्होंने यह निर्णय गहन चिंतन और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के तहत लिया था. बेरवाल ने यह भी उल्लेख किया कि डॉ. आम्बेडकर को भारत रत्न उनकी मृत्यु के लगभग 40 वर्ष बाद मिला, जो उनके योगदान की देर से मिली गई मान्यता को दर्शाता है. आभार जताते हुए आयुक्त कॉलेज शिक्षा एवं संस्थान उपाध्यक्ष डॉ ओमप्रकाश बेरवा ने संस्थान का परिचय देते हुए बताया कि यह संस्था वंचित वर्गों के हितों के लिए कार्य करती रहती है. इस अवसर पर बड़ी तादाद में लोग मौजूद थे.

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