कोलकाता, 27 मई . पश्चिम बंगाल विधानसभा के आगामी मानसून सत्र में एक महत्वपूर्ण संविधान संशोधन प्रस्ताव पेश किया जाएगा, जिसमें राज्यपाल द्वारा विधानसभा से पारित बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय करने की बात कही गई है. यह कदम सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद उठाया जा रहा है, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि राज्यपाल या राष्ट्रपति किसी भी बिल को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते.
विधानसभा का यह सत्र नौ जून से शुरू होकर दो सप्ताह तक चलेगा. इसी सत्र में यह प्रस्ताव पेश किया जाएगा. विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आलोक में जो बिल राज्यपाल के पास लंबित हैं, उन पर समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने की जरूरत है. अगर इन बिलों पर हस्ताक्षर के लिए समयसीमा निर्धारित करनी हो, तो इसके लिए संविधान में संशोधन आवश्यक होगा. इसीलिए केंद्र सरकार को भेजे जाने के उद्देश्य से विधानसभा में एक प्रस्ताव लाया जाएगा.
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने हाल ही में यह फैसला सुनाया था कि राज्यपाल या राष्ट्रपति किसी भी राज्य विधानसभा से पारित विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते. अदालत ने कहा कि इन संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को एक निश्चित अवधि के भीतर निर्णय लेना होगा. हालांकि कोर्ट ने यह भी माना कि वह राज्यपाल या राष्ट्रपति को सीधे तौर पर आदेश नहीं दे सकती, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत ‘न्याय सुनिश्चित करने’ की दिशा में विशेष आदेश देने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को है.
पश्चिम बंगाल सरकार का आरोप है कि राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने विधानसभा द्वारा पारित कई विधेयकों को मंजूरी देने में अनावश्यक विलंब किया है. इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अब सत्तारूढ़ पार्टी एक स्पष्ट संवैधानिक ढांचा तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ रही है, ताकि भविष्य में विधायी प्रक्रिया बाधित न हो.
/ ओम पराशर
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