नई दिल्ली, 08 अप्रैल . वक्फ कानून में संशोधन के आज से लागू होने के साथ ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट याचिका दायर कर मांग की है कि इसके संबंध में दायर याचिकाओं पर कोई भी आदेश देने से पहले उसका भी पक्ष सुना जाए. कैविएट दायर करने का मतलब है कि कैविएट दायर करने वाले का पक्ष सुने बिना कोर्ट कोई फैसला नहीं सुनाए.
वक्फ (संशोधन) कानून को लेकर करीब एक दर्जन याचिकाएं दायर की गई हैं. याचिका दायर करने वालों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा ए हिन्द के अलावा केरल की सुन्नी मूस्लिम विद्वानों की संस्ता समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, कांग्रेस सांसद जावेद और एआएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी समेत दूसरे लोगों ने भी इस कानून को चुनौती दी है.
07 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून में संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई का भरोसा दिया था. जमीयत उलेमा ए हिन्द की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष वक्फ कानून में संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जल्द सुनवाई की मांग की थी.
इस मामले में दिल्ली के आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान ने भी याचिका दायर की है. याचिकाओं में कहा गया है कि वक्फ कानून में संशोधन कर मुस्लिमों के धार्मिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता पर प्रहार किया गया है. याचिकाओं में कहा गया है कि वक्फ संशोधन कानून मुसलमानों के धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों का प्रबंधन करने के अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कमजोर करता है. याचिकाओं में इस संशोधन को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया गया है.
कांग्रेस सांसद की याचिका में कहा गया है कि यह बदलाव मुस्लिम समुदाय के संवैधानिक अधिकारों का हनन है. याचिका में कहा गया है कि वक्फ संशोधन कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन पर मनमाने तरीके से प्रतिबंध लगाता है और मुस्लिम समुदाय के धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करता है. ओवैसी की याचिका में कहा गया है कि वक्फ संशोधन कानून मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
/संजय
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/ प्रभात मिश्रा
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