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पहाड़ों के बीच प्रगति का सेतु 'अंजी खड्ड'

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प्रयागराज, 11 अप्रैल . जब घाटियां गहरी होती हैं और पहाड़ रास्ता रोकते हैं, तब इंसान के सपने ऊंचे हो जाते हैं. कश्मीर के दिल तक पहुंचने के इन्हीं ऊंचे सपनों ने फिर से एक नई कहानी को जन्म दिया है. ये कहानी एक पुल की है जो सिर्फ लोहे और केबल से नहीं, हिम्मत और हुनर से भी बना है. ये कहानी है भारत के पहले केबल-स्टेड रेलवे ब्रिज-अंजी खड्ड ब्रिज की जो जम्मू-कश्मीर की चुनौतीपूर्ण घाटियों के बीच, अंजी नदी की गहरी खाई को पाटता है. कटरा और रियासी के बीच कनेक्टिविटी को एक नया आयाम देने जा रहा यह अद्भुत संरचना भारतीय इंजीनियरिंग के आत्मविश्वास और कौशल की मिसाल है. यह ब्रिज उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो कटरा-बनिहाल रेल खंड में बनाया गया है. ऊबड़-खाबड़ रास्ते और कठिन भौगोलिक परिस्थितियाँ जैसी सभी सीमाओं को पार कर यह ब्रिज घाटी को देश के बाकी हिस्सों से और मजबूती के साथ जोड़ रहा है.आकर्षक डिजाईन के साथ बने इस ब्रिज का निर्माण कार्य सिर्फ 11 महीने में ही पूरा कर लिया गया है, जो नदी तल से 331 मीटर ऊंचाई पर स्थित है. जबकि नीव से 193 मीटर ऊंचा एक मजबूत सेंट्रल पायलन पर टिका हुआ है, जो इसकी पूरी संरचना को संतुलन में रखता है. अंजी खड्ड ब्रिज, चिनाब ब्रिज के बाद भारत का दूसरा सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज भी है. इस ब्रिज को 96 केबलों के सहारे बनाया गया है जिनका कुल वजन 849 मीट्रिक टन और कुल लम्बाई 653 किलोमीटर है. 725 मीटर लम्बे इस ब्रिज की संरचना में 8,215 मीट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है. वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी अमित मालवीय ने बताया कि मौजूदा आवश्यकताओं के मद्देनजर बने इस ब्रिज से जम्मू-कश्मीर के विकास के तार जुड़े हुए हैं. यह ब्रिज घाटी के दूर-दराज इलाकों में बसे गांवों और कस्बों का बड़े शहरों के साथ सीधा सम्पर्क स्थापित करता है. जिससे विकासशील जगहों पर चिकित्सा, शिक्षा और अन्य सुविधाओं की उपलब्धता आसान हो जाएगी. बेहतर कनेक्टिविटी से स्थानीय लोगों के लिए रोज़गार के नए अवसरो का सृजन होगा, साथ ही घाटी में व्यापार और पर्यटन को भी जबरदस्त बढ़ावा मिलेगा.

● पुल की कुल लंबाईः 725 मीटर● नदी के तल से ऊंचाईः 331 मीटर ● सेंट्रल पायलन की ऊंचाईः 193 मीटर ● केबल की संख्याः 96● केबल का कुल वजनः 849 मीट्रिक टन● केबल की कुल लंबाईः 653 किलोमीटर● निर्माण में कुल स्टील का इस्तेमालः 8,215 मीट्रिक टन

/ विद्याकांत मिश्र

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