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मंदी का तूफान आने वाला है, क्या भारत बच पाएगा?

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आजकल हर तरफ एक ही सवाल गूंज रहा है - मंदी क्या है और यह दुनिया को अपनी चपेट में कब लेगी? वैश्विक अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, और भारत के लोग भी सोच में पड़ गए हैं कि क्या हम इस बार भी इस तूफान से सुरक्षित निकल पाएंगे। बढ़ती महंगाई, घटती नौकरियां और शेयर बाजार की अस्थिरता ने आम आदमी से लेकर विशेषज्ञों तक को चिंता में डाल दिया है। तो आइए, इस मंदी के मायने को समझें और जानें कि इसका असर हमारी जिंदगी पर कैसे पड़ सकता है, साथ ही यह भी देखें कि भारत के पास इससे बचने की कितनी ताकत है।

मंदी का मतलब क्या है?

मंदी कोई नया शब्द नहीं है, लेकिन इसे समझना हर किसी के लिए जरूरी है। जब किसी देश की अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाहियों तक सिकुड़ती है, यानी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में गिरावट आती है, तो इसे आर्थिक मंदी कहते हैं। आसान भाषा में कहें तो जब लोग खर्च कम करते हैं, कारोबार ठप पड़ते हैं, और नौकरियां छिनने लगती हैं, तब मंदी का दौर शुरू होता है। दुनिया ने 2008 में ऐसा ही एक तूफान देखा था, जब अमेरिका से शुरू हुआ संकट पूरी दुनिया में फैल गया। आज फिर रूस-यूक्रेन युद्ध, तेल की बढ़ती कीमतें और वैश्विक व्यापार में उथल-पुथल ने मंदी की आहट को तेज कर दिया है।

दुनिया पर मंडराता खतरा

अप्रैल 2025 तक वैश्विक हालात चिंताजनक हैं। अमेरिका में ब्याज दरों का बढ़ना, यूरोप में ऊर्जा संकट और जापान जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सुस्ती ने मंदी की आशंका को हवा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ये संकट गहराया, तो निर्यात पर निर्भर देशों को भारी नुकसान होगा। भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा, क्योंकि हमारा तेल आयात और विदेशी व्यापार वैश्विक बाजार से जुड़ा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत के पास इस संकट से निपटने की ताकत है, या हम भी इस आंधी में फंस जाएंगे?

भारत का इतिहास और तैयारी

अच्छी बात यह है कि भारत पहले भी मंदी के झटकों से उबर चुका है। 2008 की वैश्विक मंदी में जहां दुनिया डगमगा रही थी, भारत ने अपनी मजबूत घरेलू मांग और सख्त बैंकिंग नीतियों के दम पर खुद को संभाला था। उस वक्त हमारी जीडीपी में गिरावट आई, लेकिन सरकार के प्रोत्साहन पैकेज और स्थानीय बाजार की ताकत ने हमें जल्दी बाहर निकाला। आज भी भारत की अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता और ग्रामीण मांग एक बड़ा सहारा है। फिर भी, बढ़ती महंगाई और रुपये की कमजोरी कुछ चिंताएं बढ़ा रही हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर सरकार सही समय पर कदम उठाए, तो हम इस बार भी बच सकते हैं।

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