श्राद्ध-पर्व हैं पुण्य धरा पर,चली आ रही रीत निरंतर,
तर्पण करके पूज्य जनों का,सुमिरन करते मन के अंदर।
चले गए जो हमें छोड़कर, इस धरती पर भवसागर में,
वही दिखाते चले आ रहे, सुपथ,सुमंगल भाव अनंतर।
श्राद्ध पर्व में करते तर्पण, उनका, छोड़ गए जो साथ,
परम पूज्य, प्यारे थे हमको, सुमिरन करते उनकी बात।
जब भी जन्में हम वसुधा पर,संग-साथ फिर रहे यहाँ,
शुभाशीष दें पथ दिखलाएं,आठ पहर हर दिन और रात।
कागा को दें पूरी-खीर,हर प्यासे पाखी को नीर,
दान करें बेबस प्राणी को, जीव-जंतु की हर लें पीर।
ऐसे ही पुनीत भावों से ओत-प्रोत हो रखें आस्था,
पुण्य कर्म करके जीवन की निर्मित करें सुखद तस्वीर।
- डा. अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
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