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Akshaya Navami 2024: आंवला नवमी पर इस कथा को पढ़ने या सुनने से मिलता है अक्षय फल

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Amla Navami Vrat Katha: प्रतिवर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी मनाई जाती है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य अक्षय फल देने वाला होता है, यानि उसके शुभ फल में कभी कमी नहीं आती। इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करके उसके नीचे बैठकर भोजन करने का बड़ा महत्व है।

आंवला नवमी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियां छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था। अत: संतान तथा पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए आंवला या अक्षय नवमी पर रखा जाता है। इस साल 10 नवंबर 2024, रविवार को आंवला नवमी मनाई जा रही है।

Highlights

  • आंवला नवमी की विशेष कथा।
  • अक्षय नवमी पर जरूर पढ़ें ये 2 कथाएं।
  • आंवला नवमी की पावन व्रत कथा।

यहां पढ़ें आंवला नवमी की पारंपरिक कथा- आंवलया राजा और सवा मन आंवले :

आंवला नवमी व्रत के समय यह कहानी कही और सुनी जाती है। इसके अनुसार एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था। इससे उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया। एक दिन उसके बेटे बहु ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जाएगा। इसीलिए बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए।

बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुख हुआ और राजा-रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गए। राजा-रानी आंवला दान नहीं कर पाए और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं। जब भूखे प्यासे रहते हुए 7 दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण और सत नहीं रखा तो इनका विश्वास चला जाएगा। इसलिए भगवान ने, जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए। सुबह राजा-रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है।

राजा, रानी से कहने लगे रानी देख कहते हैं, 'सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आए'। आओ नहा धोकर आंवले दान करें और भोजन करें। राजा-रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे। उधर आंवला देवता का अपमान करने व माता-पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहु बेटे के बुरे दिन आ गए।

राज्य दुश्मनों ने छीन लिया, दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुंचे। उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया। बेटे-बहु सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मालिक भी हो सकते है, सो उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना। एक दिन बहु ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा की ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था। हमने ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा। आज वे लोग न जाने कहां होगे?

यह सोचकर बहु को रोना आने लगा और आंसू टपक-टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरंत पलट कर देखा और पूछा कि, तू क्यों रो रही है? उसने बताया आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था, इसलिए वे घर छोड़कर कहीं चले गए। तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया। अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बेटे-बहु भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे। हे भगवान, 'जैसा राजा रानी का सत रखा, वैसा सबका सत रखना। कहते-सुनते सारे परिवार का सुखी रखना'यही इस कहानी का अर्थ है।

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शंकराचार्य से प्रसन्न होकर देवी लक्ष्मी ने की थी गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा। पढ़ें आंवला नवमी की दूसरी रोचक कथा...

एक कथा के अनुसार एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली- महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं।

शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे। इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की।

यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती।

शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा- हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।

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